Blissful Life by Krishna Gopal
धर्म का सही मूल्यांकन
Letter 01: What are IQ, EQ, and SQ?
Letter 02: Spirituality Quiescent (to know the creator of the universe and its creation)
Letter 03: Relation between soul and body
Letter 05: भक्ति व ज्ञान मार्ग में अंतर
Letter 08: The future of the country is in the hands of youngsters?
Letter 09: आज की शिक्षा प्रणाली
Letter 10: शिखर पर पहुँचने का रास्ता
Letter 11: भारत दुनिया का अग्रणीय राष्ट्र बनने की कगार पर
Letter 13: ड्रामे का गुह्य रहस्य
आज बाह्य यात्रा के बजाय अंतर्यात्रा पर जाने का समय है

कल हमने कुदरत को मिटाया था, आज कुदरत हमें मिटाने पर तुली हुई है। हमने प्रकृति को बहुत हल्के में लिया, सुनामी की मार झेली फिर भी प्रकृति के इशारे को नहीं समझे। हमें क्या सारी दुनिया को एक सबक मिला है अब तो जागें या अभी भी कुंभकरण की नींद सोते रहेंगे। स्वस्थ रहने के लिए प्रकृति से नाता जोड़ना होगा। स्वस्थ रहने का आसान मंत्र है, प्रकृति के नियमों का पालन करना। प्रकृति से छेड़छाड़ करना बंद करना होगा।
कुदरत किसी का लिहाज नहीं करती। जो कानून तोड़ता है वह दंडित होता है, जो पालन करता है वह पुरस्कृत होता है।
हमारे दुखों का कारण और कोई नहीं बल्कि हमारे कर्म होते हैं। सत्य हमेशा एक ही होता है भिन्न-भिन्न कैसे होगा? सत्य न अपना होता है, न पराया, न पुराना, न नया होता है। वह न बूढा होता है, न जवान, न हिंदू, न मुसलमान। धर्म वही जिसमें बुद्धि (अक्ल) को स्थान हो। सांप्रदायिक नेता सच्चाई को तर्क की कसौटी पर परखने नहीं देते। जिससे अंधविश्वास पनपता है। सांप्रदायिक नेताओं को यह डर बना रहता है कि मेरे मानने वाले दूसरे संप्रदाय में न जा मिलें। इस कारण अपनी मान्यताओं का लेप चढ़ाएं रखते हैं। सत्य को मानने वाले किसी भी संप्रदाय से बंध नहीं सकते।
आज कर्मकांड ही हमारा धर्म बन गया है, वास्तविक धर्म पीछे छूट गया है। मंदिर, मस्जिद, चर्च में हाजिरी देना ही धर्म बन गया है। किसी अज्ञात सत्ता को संतुष्ट–प्रसन्न करने के लिए बलि तक चढ़ाने से नहीं हिचकते। उसे ही धर्म मानते हैं और तो और जो कर्मकांड स्वयं नहीं कर सकते उसे पैसा देकर पंडित मौलवियों से करवा लेते हैं।
अज्ञानतावश अभी भी हम पुरानी मान्यताओं से जुड़े हुए हैं। कहने का अर्थ है शिव छूट गया है, शव रह गया है। हर बात को अपने ही चश्मे से देखने के आदी हो गए हैं? धर्म की शुद्धता को भूल गए हैं।
वह ज्ञान किस काम का जिसे हम जीवन में न उतारें। रसगुल्ले का स्वाद जानने के लिए उसे जीभ पर रखना ही होगा। बगैर दूध का सेवन किए शरीर पुष्ट नहीं हो सकता।
अपने धर्म का सही मूल्यांकन करना सीखें। केवल अपने हित के लिए कुटिलता त्यागिनी होगी।
सर्वहित में ही महामंगल है।
With lots of Love & Affection
Dada
Krishna Gopal
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