Blissful Life by Krishna Gopal
घर बुलाता है...
Letter 01: What are IQ, EQ, and SQ?
Letter 02: Spirituality Quiescent (to know the creator of the universe and its creation)
Letter 03: Relation between soul and body
Letter 05: भक्ति व ज्ञान मार्ग में अंतर
Letter 08: The future of the country is in the hands of youngsters?
Letter 09: आज की शिक्षा प्रणाली
Letter 10: शिखर पर पहुँचने का रास्ता
Letter 11: भारत दुनिया का अग्रणीय राष्ट्र बनने की कगार पर
Letter 13: ड्रामे का गुह्य रहस्य
आज बाह्य यात्रा के बजाय अंतर्यात्रा पर जाने का समय है

जब हम किसी कार्यवश या सैर सपाटे के लिए घर से बाहर जाते हैं तो प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। लेकिन जरा सोचिये यदि इसी बीच घर भूल जायें तो क्या स्थिति होगी? हमारा मान-सम्मान, सुख-चैन सब, यहाँ तक की अपना लक्ष्य भी गवाँ बैठेंगें।
अतः यह अति आवश्यक और महत्वपूर्ण हो जाता है कि अपने सुख-चैन के लिये घर से संपर्क अवश्य बनाये रखें।
आज क्या हो रहा है, हम सभी जीवात्माएँ अपने घर (परमधाम) से दूर, इस सृष्टि रंगमंच पर आकर अपने वास्तविक घर को भूल गये हैं और भटक गये हैं। हमारा सुख-चैन, लगभग खत्म सा हो गया है और इस प्रकार जीवन का संतुलन बिगड़ गया है। (रंगमंच घर नहीं हो सकता) इसे ही अपना घर मानकर confusion create कर लिया है।
जैसे हर एक मनुष्य की दो आँखें, दो कान, दो हाथ, दो पैर होते हैं। शरीर के इन दो दो अंगों के कारण ही शरीर संतुलित नजर आता है। इसी प्रकार हमारे पिता दो हैं और घर भी दो हैं। इन दोनों पिताओं और दोनों घरों को जान लेने के बाद ही हमारा संतुलित विकास हो सकता है।
हमारे दो पिताओं में से एक पिता है इन आँखों से दिखने वाला परन्तु हर जन्म में बदल जाने वाला। दूसरा पिता है इन नेत्रों से न दिखने वाला और कभी न बदलने वाला। इसी प्रकार हमारे दो घरों में एक घर है इन आँखों से दिखने वाला परन्तु हर जन्म में बदलने वाला। दूसरा घर है इन नेत्रों से न दिखने वाला और कभी भी किसी भी काल समय में न बदलने वाला अर्थात शाश्वत।
मैं आत्मा उस देश का वासी हूँ जहाँ ईंट पत्थरों की दीवारें नहीं, हदें और लकीरें नहीं, भेद और बटवारा नहीं। विश्व की सर्व आत्माओं की सामूहिक अचल सम्पत्ति है। जो कभी नहीं बदलती। कम व ज्यादा भी नहीं होती। वो हमारा lovely sweet home है। विशेष बात यह है कि घर का मालिक साथ है।
ऐसा शाश्वत घर है परमधाम और ऐसा शाश्वत पिता है परमात्मा। दोनों में ही “परम” शब्द आया है जिसका अर्थ है परे से भी परे (सर्वोच्च है) । हमारा वो सच्चा पिता परमधाम में रहता है और हम सब आत्माएँ वहीँ की वासी हैं। और पार्ट बजाने हेतु एक अभिनेता की तरह इस धरती (रंगमंच) पर आई हैं।
वैसे भी इस लौकिक दुनियाँ में जब भी कोई घर से बाहर जाता है तो उसे वहाँ रहने की व खाने पीने की वो सुविधा नहीं मिल पाती जो अपने घर में मिलती हैं। तब हम यह कहकर अपने को आश्वस्त करते हैं या तसल्ली देते हैं कि कुछ दिनों की ही तो बात है फिर अपने घर में आराम से खाना पीना सोना करूँगा। अर्थात घर की याद बे आरामी में भी आराम देती है।
इसी प्रकार इस सृष्टिमंच पर पार्ट बजाते बजाते यदि जीवन में बेआरामी हो तब यदि यह याद कर लें बस कुछ दिनों की बात है फिर तो मुझे अपने sweet शांतिधाम (अविनाशी) में जाना है, जहाँ सच्चा चैन आराम मिलेगा। तो उस बेआरामी में भी आराम का अनुभव करेंगें और आलस्य त्याग कर दुगने उत्साह से कार्य करने लगेंगे।
Wordsworth (English Poet) ने लिखा है, लन्दन जैसे शहर में रहते हुए, यहाँ की तेज रफ़्तार की जिंदगी, भागम भाग में भी परमधाम जाकर गहन शांति और आनन्द का अनुभव कर लेता हूँ।
मानव तन से कहीं भी रहे मन से जहाँ रहता है वैसी ही अनुभूति पाता है।
हम आत्माएँ शांतिधाम (परमधाम) की रहने वाली हैं, हम आत्माओं का मूल स्वभाव भी शान्ति ही है। उस शांति की प्राप्ति के लिये हमारी खींच हमारे शांतिधाम की तरफ रहती है परन्तु घर का सही पता न होने के कारण हम बेचैन रहते हैं।
वर्तमान समय में निराकार परमात्मा सदगुरू के साथ combined होकर सदगुरू के मुखाग्र बिंदु द्वारा हम बच्चों को घर का पता देने के साथ, घर लौटने के नियम भी बता रहे हैं क्योंकि वो चाहते हैं कि जैसे पवित्र व साफ सुथरे हम अपने घर से इस धरा पर अवतरित हुये थे वैसे ही बनकर लौटें। हमें अपने पिता से किसी भी प्रकार की डाँट डपट या सजा न खानी पड़े।
यह हमारे लिए एक सुनहरा अवसर है कि घर का मालिक स्वयं बुलाने आया है।
With lots of Love & Affection
Dada
Krishna Gopal
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