Blissful Life by Krishna Gopal
Letter 05: भक्ति व ज्ञान मार्ग में अंतर (Difference between BHAKTI (Devotion) & The Path of Knowledge)
Letter 01: What are IQ, EQ, and SQ?
Letter 02: Spirituality Quiescent (to know the creator of the universe and its creation)
Letter 03: Relation between soul and body
Letter 05: भक्ति व ज्ञान मार्ग में अंतर
Letter 08: The future of the country is in the hands of youngsters?
Letter 09: आज की शिक्षा प्रणाली
Letter 10: शिखर पर पहुँचने का रास्ता
Letter 11: भारत दुनिया का अग्रणीय राष्ट्र बनने की कगार पर
Letter 13: ड्रामे का गुह्य रहस्य
आज बाह्य यात्रा के बजाय अंतर्यात्रा पर जाने का समय है

प्रिय बच्चों,
सामान्यतः भक्ति करने का तरीका हम अपने माँ बाप अथवा पूर्वजों से सीखते आये हैं। वो ऐसा करते थे तो हम भी बस वैसा ही कर रहे हैं। एक प्रथा चली आ रही है। क्यों, किसलिये आदि जैसे प्रश्न करने का प्रयत्न ही नहीं करते, संतुष्ट हो जाते हैं कि बस एक यही तरीका है पूजा पाठ या ईश्वरीय भक्ति का।
इसके विपरीत ज्ञान मार्ग में चलने पर हम logic और wisdom का प्रयोग करते हैं। दोनों रास्ते एक दम अलग अलग हैं।
भक्ति व ज्ञान मार्ग में यदि कोई समानता है तो केवल इतनी की दोनों में Adoption (गोद लेना) होता है। लेकिन दोनों के Adoption में बहुत अंतर है।
भक्ति मार्ग में जब किसी गुरू द्वारा Adopt किये जाते हैं तो गुरू और शिष्य (चेले) का सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। हम followers (अनुयायी) कहलाते हैं। लेकिन ज्ञान मार्ग में हम परमात्मा द्वारा Adopt किये जाते हैं तो परमात्मा के बच्चे बन जाते हैं। बच्चा बनना यानि पिता पुत्र/पुत्री का सम्बन्ध होना। और पुत्र का स्थान पिता की गोद होता है।
जबकि भक्ति में भक्त का स्थान भगवान के चरणों में होता है।
तो बताइये आप भक्त बनना चाहते हैं या पुत्र?
ज्ञान मार्ग में पुत्र बनने पर आप उसकी मिलकियत के अधिकारी (मालिक) हो जाते हो अर्थात वर्सा के अधिकारी। पिता और पुत्र का सम्बन्ध होने पर हम God loving बन जाते हैं जबकि भक्ति में God fearing हो जाते हैं।
भक्ति में भगवान से कृपा अथवा आशीर्वाद माँगते हैं। अपने को नीच व पापी कहने से भी नहीं हिचकते।
ज्ञान मार्ग में पढ़ाई पढ़नी होती है। परमपिता परमात्मा टीचर बनकर पढ़ाता है। हर एक को अपना अपना पुरुषार्थ (मेहनत) करना होता है। ज्ञान मार्ग में माँगना नहीं पड़ता, यहाँ Aim और object होता है। अगर परमात्मा अर्थात टीचर कृपा करने लगे तो पूरी class पास हो जाये (कोई फैल ही न हो)। बगैर युद्ध करे जगतजीत कैसे बनोगे? ज्ञान मार्ग में मेहनत के अनुसार Grading मिलती है। कृपा या आशीर्वाद से नहीं। इसलिए भक्ति मार्ग में ही सबसे ज्यादा मंदिर बनते हैं। मंदिर में जाकर हम एक प्रकार से मँगते बन जाते हैं, प्रार्थना करते हैं, वो भी शर्तों के साथ। प्रार्थना का अर्थ ही है Request, अर्थात माँगना।
भक्ति मार्ग में ज्ञान की clarity नहीं होती। अंधविश्वास बना रहता है। Knowledge clear न होने के कारण डर बना रहता है। ज्ञान मार्ग में अंधविश्वास खत्म हो जाता है, हमें पूर्ण विश्वास रहता है कि हमारा ध्यान रखने वाला इस ब्रह्माण्ड का रचयिता, सर्वशक्तिमान, हमारा पिता है। उसे हम अपने आसपास महसूस करते हैं।
ज्ञान मार्ग में तकदीर बनाने का आधार पढ़ाई पर निर्भर करता है। भक्ति मार्ग में गुरू आगे आगे चलते हैं और शिष्य उनके पीछे पीछे। जबकि ज्ञान मार्ग में पिता (परमात्मा) अपने बच्चों को आगे रखता है और खुद पुत्र के पीछे रहकर उसकी सुरक्षा करता है, भटकने से रोकता है। ज्ञान मार्ग में पुत्र को पूरा पूरा विश्वास होता है कि मेरा पिता मेरे साथ ही (पीछे) चल रहा है, मेरा मार्ग प्रशस्त कर रहा है। मैं भटक नहीं सकता, क्योंकि वो हमेशा मेरे साथ है।
कहावत है,
“परमात्मा संसार में सबको हीरा बनाकर भेजते है, परन्तु चमकता वही है, जो तराशने की हद से गुजरता है।”
उदाहरण –
अक्सर लोग श्राद्ध में डरकर आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध इसलिए करते हैं कि कहीं कोई अनर्थ न हो जाये, क्योंकि वह आत्मा दूसरा जन्म ले चुकी होती है, उस आत्मा से हमारा रिश्ता खत्म हो जाता है। अब वो हमारा कुछ भी अर्थ-अनर्थ नहीं कर सकती। अतः उसके लिए श्राद्ध का कोई अर्थ नहीं रह जाता। श्राद्ध मृत्यु के चार या पाँच वर्ष तक ही करना काफी होता है।
ज्ञान मार्ग में हम इस ब्रह्माण्ड के रचयिता, सर्वशक्तिमान के बच्चे बने हैं, अतः हमें उनसे माँगना भी नहीं चाहिए। कहते हैं, “माँगने से मरना भला”, परमात्मा स्वयं हमारा ध्यान रखते हैं।
क्या आपने टाटा-बिरला के बच्चों कभी माँगते हुए देखा है?
With lots of Love & Affection
Dada
Krishna Gopal
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