Blissful Life by Krishna Gopal

Letter 06: दिव्य दृष्टि

DigitalG1 Letter

प्रिय बच्चों,

दिव्य दृष्टि को मन की तीसरी आँख भी कहा गया है। इन स्थूल नेत्रों के बंद होने पर भी वह खुली रहती है या इन आँखों के न होने पर भी वह (मन की तीसरी आँख) काम करती है।
उदाहरणार्थ नींद के समय ये स्थूल नेत्र तो बंद रहते हैं परन्तु फिर भी सपने में सब कुछ देखते रहते हैं (इस तीसरी आँख द्वारा) यह तीसरा नेत्र हमारी भृकुटि में बैठी चैतन्य शक्ति आत्मा है, और इसे ही दिव्य चक्षु कहते हैं।
स्थूल नेत्र तो इस स्थूल जगत को ही देख पाते हैं, परन्तु दिव्य चक्षु चाँद तारों के पार भी देख सकते हैं। यहाँ तक कि आने वाले भविष्य को भी देख सकते हैं।
आँख तो मृत्यु के बाद नष्ट हो जाती है पर इनसे किये गए पाप आत्मा में संचित हो जाते हैं।
उदाहरण के लिए किसी हिंसक, निर्दयी, क्रूर व्यक्ति की आँखों का प्रत्यारोपण किसी दयावान, सहृदयी, महान व्यक्ति के शरीर में कर दिया जाए तो उन्ही आँखों से करुणा, दया, खुशी, प्रेम झलकने लगेगा। इससे सिद्ध होता है की दृष्टि नहीं दृष्टा आत्मा जिम्मेवार है।
इसलिए जैसा देखेंगे, वैसा ही सोचेंगे, फिर वैसा ही कर्म होगा। कोई भी कर्म अचानक नहीं होता। वह (कर्म) पहले संकल्पों में लम्बे समय तक पलता है और अनुकूल समय आते ही घटित हो जाता है।
इसलिए मित्रों आँखों को साफ रखना जरूरी है, यदि आँख गन्दी है तो सब कुछ गन्दा ही दिखाई देगा।
ये आँख प्रभु की सबसे बड़ी अमानत हैं इन्हें सम्भालकर बचाकर रखना परम आवश्यक है।

With lots of Love & Affection

Dada
Krishna Gopal

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