Blissful Life by Krishna Gopal
Letter 06: दिव्य दृष्टि
Letter 01: What are IQ, EQ, and SQ?
Letter 02: Spirituality Quiescent (to know the creator of the universe and its creation)
Letter 03: Relation between soul and body
Letter 05: भक्ति व ज्ञान मार्ग में अंतर
Letter 08: The future of the country is in the hands of youngsters?
Letter 09: आज की शिक्षा प्रणाली
Letter 10: शिखर पर पहुँचने का रास्ता
Letter 11: भारत दुनिया का अग्रणीय राष्ट्र बनने की कगार पर
Letter 13: ड्रामे का गुह्य रहस्य
आज बाह्य यात्रा के बजाय अंतर्यात्रा पर जाने का समय है

प्रिय बच्चों,
दिव्य दृष्टि को मन की तीसरी आँख भी कहा गया है। इन स्थूल नेत्रों के बंद होने पर भी वह खुली रहती है या इन आँखों के न होने पर भी वह (मन की तीसरी आँख) काम करती है।
उदाहरणार्थ नींद के समय ये स्थूल नेत्र तो बंद रहते हैं परन्तु फिर भी सपने में सब कुछ देखते रहते हैं (इस तीसरी आँख द्वारा) यह तीसरा नेत्र हमारी भृकुटि में बैठी चैतन्य शक्ति आत्मा है, और इसे ही दिव्य चक्षु कहते हैं।
स्थूल नेत्र तो इस स्थूल जगत को ही देख पाते हैं, परन्तु दिव्य चक्षु चाँद तारों के पार भी देख सकते हैं। यहाँ तक कि आने वाले भविष्य को भी देख सकते हैं।
आँख तो मृत्यु के बाद नष्ट हो जाती है पर इनसे किये गए पाप आत्मा में संचित हो जाते हैं।
उदाहरण के लिए किसी हिंसक, निर्दयी, क्रूर व्यक्ति की आँखों का प्रत्यारोपण किसी दयावान, सहृदयी, महान व्यक्ति के शरीर में कर दिया जाए तो उन्ही आँखों से करुणा, दया, खुशी, प्रेम झलकने लगेगा। इससे सिद्ध होता है की दृष्टि नहीं दृष्टा आत्मा जिम्मेवार है।
इसलिए जैसा देखेंगे, वैसा ही सोचेंगे, फिर वैसा ही कर्म होगा। कोई भी कर्म अचानक नहीं होता। वह (कर्म) पहले संकल्पों में लम्बे समय तक पलता है और अनुकूल समय आते ही घटित हो जाता है।
इसलिए मित्रों आँखों को साफ रखना जरूरी है, यदि आँख गन्दी है तो सब कुछ गन्दा ही दिखाई देगा।
ये आँख प्रभु की सबसे बड़ी अमानत हैं इन्हें सम्भालकर बचाकर रखना परम आवश्यक है।
With lots of Love & Affection
Dada
Krishna Gopal
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